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1. यदि आपके जीवन को प्रभावित करने वाले प्रत्येक मुद्दे पर निर्णय कोई दूसरा करे और निर्णय लेते समय आपकी राय को कोई महत्व ना दिया जाए तथा निर्णय के बाद जुर्माने व दण्ड का भय दिखाकर आप पर निर्णय थोप दिया जाए तो क्या आप आजाद हो ?
2. क्या आप जानते है कि वोट देने का अर्थ क्या होता है ? वोट देने का अर्थ होता है ‘अपने जीवन से जुड़े प्रश्नों पर निर्णय लेने के अपने अमूल्य अधिकार को विश्वास करके किसी अन्य व्यक्ति को सौंपना ‘तथा उसके द्वारा लिए गए निर्णय से बंध जाना।
3. क्या आप जानते कि वोट के रूप में आप अपना भविष्य निर्णय हेतु अपने जनप्रतिनिधि को सौंप देते हैं, वो भी बिना किसी लिखित गारंटी के, केवल विश्वास के आधार पर ?
4. यदि वोट लेने के बाद आपका प्रतिनिधि आप ही को बंधक बनाने वाले या आप ही के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले निर्णय करने लगे या उन निर्णयों में सहभागी बनने लगे तो आपके पास उससे बचने का क्या उपाय है ?
5. यदि आपके प्रतिनिधि के सामने क्षेत्र की जनता या पार्टी के आलाकमान दोनों में से किसी एक को चुनने को कहा जाए तो वो किसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाएगा ?
6. राजनीतिक पार्टी प्रत्याशी को केवल टिकट देती है वो भी सशर्त व धन खर्च कराकर और जनता उसे वोट के रूप में अपना पूरा भविष्य सौंप देती है वो भी बिना शर्त, बिना गारंटी। फिर भी चुनाव के बाद चुना गया जनप्रतिनिधि पार्टी को महत्व देता है,जनता को नहीं, आखिर क्यों ?
7. यदि आपको ‘वोट’ डालने का अधिकार ही नहीं हो तो क्या कोई राजनेता या राजनैतिक दल आपको महत्व देगा ?
8. यदि जन—प्रतिनिधि को सत्ता प्राप्त करने के लिए आपके ‘वोट’ की आवश्यकता ही समाप्त हो जाए तो क्या वो आपकी बात सुनने के लिए बाध्य रहेगा ?
9. क्या आजादी से पूर्व हमें यानी भारत की जनता को वोट का अधिकार था ? यदि होता तो क्या अंग्रेज भारतीयों के विरूद्ध कानून बना पाते ?
स्पष्ट है कि ‘वोट’ का अधिकार राज्य व्यवस्था में मनुष्य के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है।
याद रहे जिसे वोट का अधिकार नहीं, उसकी कराह में कोई मददगार नहीं ।
और जिसे अपने ही वोट की कद्र नहीं,उसके भविष्य का कोई हमदर्द नहीं ।
दरसल आजादी के 76 साल बाद तक अगर देश के नागरिकों की दुर्दशा को यदि कोई सबसे महत्वपूर्ण कारण है तो वो है ‘बिना सोचे समझे और बिना किसी लिखित गारंटी ‘ के अपने अमूल्य वोट को नेताओं को सौंप देना तथा वोट के बाद उसे व उसके राजनीतिक दल को अपने भविष्य के साथ मनचाहा खिलवाड़ करने के लिए बेलगाम छोड़ देना। यदि हम एकजुट होकर जनता को उसके वोट की लिखित गारंटी नहीं देने वाले प्रत्याशियों का चुनाव में सिरे से बहिष्कार कर दें तो लोकतंत्र की तसवीर बदल सकती है।
विदित हो कि हम ‘वोट’ के महत्व को समझ रहे हैं, हम लोगों को वोट का महत्व समझा भी रहे हैं और संभवत: हम लोगों को जगाने के इस अभियान में बहुत आगे भी निकल जाएं परन्तु आज हमारे लोकतंत्र के सामने एक और बेहद महत्वपूर्ण समस्या विकराल अजगर की तरह लोकतंत्र को निगल रही है या यू कहें काफी हद तक निगल चुकी है।
जरा ध्यान से देखिए लगभग सभी राजनीतिक दलों द्वारा बनाई गई सरकारों द्वारा जनमत व जनहित की बजाय निरंकुश निर्णयों के माध्यम से पूंजीपतियों के पोषण व जनता के शोषण को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ व कृत्य हमें लगातार इस बात का आभास करा रहे हैं कि अब शायद उन्हें जनता का वोट लेने के लिए दर—दर भटकने या जनता की चापलूसी करने की कोई आवश्यकता ही नहीं बची है क्योंकि उनके हाथ वोट बनाने की एक जादूई मशीन ‘ई.वी.एम.’ लग चुकी है जिसके माध्यम से सत्ता के चिराग तक बेखौफ व निरंकुश तरीके से पहुंचा जा सकता है तथा आई.टी.सैल व मेन स्ट्रीम मीड़िया पर भड़काउ व भटकाऊ प्रचार के माध्यम से वोट की लूट पर पर्दा भी डाला जा सकता है।
ईवीएम नामक इस मशीन को हम वोट चुराने वाली, वोट बनाने वाली या हमारा भविष्य कुचलने वाली मशीन भी कह सकते हैं।
अत: आज हमें सबसे पहले अपने वोट यानी अपने भविष्य की रक्षा करनी होगी तथा इस विवादास्पद व संदेहासपद मशीन को चुनाव प्रक्रिया से बाहर का रास्ता दिखाने हेतु संगठित प्रतिरोध व विवेकपूर्ण संघर्ष का रास्ता अपना होगा।
विदित हो कि पहली बार भारत में 1982 में केरल की पारूल विधानसभा क्षेत्र में ईवीएम मशीन प्रयोग की गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध करार दिया क्योंकि जन प्रतिनिधित्व कानून,1951 (मतपत्र) में वर्णन नहीं था।
दिसम्बर 1988 में जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन किया गया जोकि 1989 में लागू हुआ इस संशोधन के तहत जन प्रतिनिधित्व कानून,1951 में धारा 61 ए जोड़ी गई तथा उसमें वोटिंग मशीन को स्वीकृति तो दी गई परन्तु केवल सीमित मात्रा में वो भी निर्वाचन क्षेत्र में उसकी आवश्यकता के समस्त कारणों की उचित समीक्षा व व्याख्या के बाद ।
इसी संशोधन के आधार पर चुनाव आयोग 1989 से वोटिंग मशीन को वैध बताते हुए चुनाव करवाता है, 1998 में राज,मध्यप्रदेश व दिल्ली के कुल 25 लोकसभा क्षेत्रों में तथा 2004 से वो नियमित रूप से बेरोकटोक ईवीएम का प्रयोग कर रहा है ।
चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग इस तथ्य को छिपा जाता है कि उसे ईवीएम प्रयोग के ये अधिकार केवल सीमित रूप से मिले हैं वो भी प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम की आवश्यकता के कारणों की आवश्यकता की तर्कसंगत व्याख्या के करने के बाद।
स्पष्ट है कि चुनाव आयोग का यह कृत्य गैर—संवैधानिक,कानून के विपरीत तथा चुनाव आयोग की शक्तियों से बाहर है । अत : सर्वोच्च न्यायालय को इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेकर ना सिर्फ भारत के नागरिकों के सबसे महत्वपूर्ण अधिकार और आजादी के सबसे बड़े प्रतीक ‘मतदान के अधिकार’ को यानी उसके वोटों को इस मशीन द्वारा की जा रही लूट के चंगुल से मुक्त करवाना चाहिए वरन् निर्वाचन आयोग द्वारा साजिशन कानून की अधूरी पालना द्वारा निरंतर करवाए जा रहे ईवीएम आधारित चुनावों को अवैध घोषित करना चाहिए।
यक्ष प्रश्न यह है कि तकनीक में भारत से कई गुना मजबूत देशों जैसे नीदरलैंड ,आयरलैंड , जर्मनी ,कैलेफोर्निया (यूएसए), इंग्लैण्ड , फ्रांस , इटली व जापान में बैलेट पेपर से चुनाव होते हैं तथा उन्होने ईवीएम का बहिष्कार कर रखा है तो भारत में इसकी आवश्यकता आखिर क्यों पड़ी ?
क्या वास्तव में ईवीएम की आवश्यकता थी या लोकतंत्र को हाईजैक करने की नीयत से इस मशीन को धीरे—धीरे हमारी चुनाव प्रक्रिया का वैधानिक हिस्सा बनाया गया है ?
कहीं ऐसा तो नहीं विदेशी षड़यंत्रकारियों ने भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों को अपने इसी हथियार के जरिए लालायित कर अपने हाथों की कठपुतली बना लिया हो और उन्हें अपनी अपनी हैसियत के अनुसार भारत के विभिन्न राज्यों एवं केन्द्र की सत्ता में सीटों का बंटवारा कर सत्ता में साझीदार बना लिया हो ताकि एक दूसरे की जीत से ईवीएम पर लगने वाले प्रश्नचिह्नों के प्रति जनता को भ्रमित किया जा सके तथा वोट की लूट से ध्यान हटाया जा सके ।
जानकारी में आया है कि ईवीएम में जिस माईक्रो प्रोसेसर यानी चिप का प्रयोग होता है उसका पेटेंट विदेशी ताकतों के पास है।
यदि ऐसा है तो ये क्यों नहीं माना जाए कि भारत का लोकतंत्र विदेशी ताकतों द्वारा हाईजैक कर लिया गया है और भारत में लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ राजनीतिक दलों की नूराकुश्ती चल रही है, जिसका मकसद देश व देश के नागरिकों के संसाधनों की लूट को जारी रखना मात्र है।
क्या कारण है कि ईवीएम के साथ जोड़ी गई मशीन वीवीपैट से प्रिंट हुई निर्वाचन क्षेत्र की सभी पर्चियों को गिना नहीं जाता है तथा उन्हें व ईवीएम के डेटा को चुनाव समाप्त होने के बाद अगले चुनाव तक सुरक्षित रखने की बजाय कुछ ही महीनों में नष्ट कर दिया जाता है?
क्या कारण है कि जो राजनीतिक दल व राजनेता 2014 से पूर्व तक ईवीएम को पानी पी—पी कर कोस रहे थे, ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क’ जैसी किताबें लिख रहे थे, सुप्रीम कोर्ट के दरवाजा तोड़े डाल रहे थे । आज वही सब नेता व दल ईवीएम के प्रबल समर्थक बने हुए हैं तथा बैलेट पेपेर से चुनाव की बात सुनते ही आगबबूला हो जाते हैं।
क्या कारण है कि आज का विपक्ष और पुराना पक्ष ‘ईवीएम’ के मुद्दे को बड़े ही डिफेंसिव तरीके से उठाता है, उसके खिलाफ कोई व्यापक जन—आंदोलन नहीं छेड़ता है। आखिर सत्ता में रहते समय उसे ईवीएम अच्छी क्यों लग रही थी और आज विपक्ष में आते ही वो उसका विरोध तो कर रहा है परन्तु बेहद अनमने व सधे हुए ढंग से ।
राजनीतिक दलों की बात तो वो ही जाने परन्तु इतना तो तय है कि इस देश के करोड़ों लोगों को ईवीएम पर भरोसा नहीं है । ध्यान रहे चुनाव प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण तत्व भरोसा या संदेहविहीनता होता है और जब जनता में इतना भारी अविश्वास है तो आखिर ऐसी क्या कारण हैं कि सत्ताधीश इसे छोड़ना ही नहीं चाह रहे हैं।
आज आजादी के पावन पर्व पर हम देश के नागरिकों को चेताना चाहते हैं कि वो अपने वोट यानी अपने भविष्य की लूट के प्रति जागरूक बनें तथा संदेहमुक्त चुनाव प्रणाली के संघर्ष को अपना समर्थन प्रदान करें।
विदित हो कि ‘वोट का ‘ एवं ‘वोट पर’ आपका अधिकार बचेगा तो ही बतौर नागरिक आपका देश में कोई महत्व बचेगा और जब बतौर नागरिक आपका महत्व बचेगा तभी यह देश, इस देश का लोकतंत्र, संविधान तथा हमारे बच्चों का भविष्य बच पाएगा।
याद रहे——
(1)
”शमशान व कब्रिस्तान की मिट्टी में उन अनगिनत कायरों की मूर्खताएं भी दफन हैं,
जो किसी भी संघर्ष में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं हुए क्योंकि उन्हें जिंदा रहना था।”
(2)
‘जो आया है वो जाएगा, छिप कर क्या कोई बच पाएगा’
(3)
‘ जीवन लम्बा नहीं,सार्थक होना चाहिए’
जय हिंद! जय भारत! जय जगत!
जय संविधान! जय लोकतंत्र ! जय इंसानियत!
शुभेच्छु!
अनिल यादव
सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज।
अध्यक्ष,जन संप्रभुता संघ ।
अध्यक्ष,सतपक्ष पत्रकार मंच।
9414349467